Rewa News:रीवा में विजयादशमी पर्व की राजसी परंपरा
Rewa News:रीवा में विजयादशमी उत्सव की परंपरा महाराजा विक्रमादित्य सिंह सपेल के शासनकाल (1618) में शुरू हुई। इसी साल महाराजा ने रीवा को नई राजधानी बनाया और किले में दशहरा समारोह का आयोजन किया। समय के साथ उत्सव का तरीका बदलता गया, लेकिन इसकी भव्यता और राजसी रंग बरकरार रहा।
भव्य दशहरा उत्सव
महाराजा व्यंकटरमण सिंह के शासनकाल में दशहरा समारोह और भव्य हुआ। उनके समय में पुष्पवर्षा के लिए तीन विमान और फौजी सवारी, हाथी-घोड़े का जुलूस शामिल होता था। बघेल और बांधव नामक विमान से फूल बरसाए जाते थे। जनता उत्साह के साथ इसमें भाग लेती थी।
स्थान और आयोजन में बदलाव
शुरुआत किले से हुई थी, लेकिन समय के साथ किले का प्रांगण छोटा पड़ने लगा। महाराजा विश्वनाथ सिंह ने बिछिया के हजिरिहा मैदान को चुनकर उत्सव और व्यापक बनाया। बाद में एसएएफ मैदान और स्टेडियम के बाद आज एनसीसी ग्राउंड में यह परंपरा जारी है।
गद्दी पूजन और राजघराने की भागीदारी
आज भी महाराजा पुष्पराज सिंह जूदेव द्वारा किले में गद्दी पूजन किया जाता है। भगवान श्री राजाधिराज जू की पूजा की जाती है। गद्दी पूजन के बाद चल समारोह और राजसी सवारी निकाली जाती है। यह परंपरा रीवा राजघराने की शान और धार्मिक आस्था का प्रतीक है।
नवरात्र और मातारानी की विदाई
दस दिवसीय नवरात्र के अंतिम दिन मातारानी की विदाई का आयोजन हुआ। जिलेभर में हवन-पूजन, कन्या भोज, जागरण, भजन-कीर्तन और डांडिया का आयोजन हुआ। रानीतालाब में भव्य देवी जागरण हुआ, जिसमें उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल मुख्य अतिथि रहे। इसी क्रम में शतचंडी यज्ञ भी लक्ष्मण बाग में पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न हुआ।

Author: Vindhya Times
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