रीवा लोकसभा चुनाव 2024 : रीवा का विजेता कौन ?
रीवा लोकसभा चुनाव 2024 : मध्य प्रदेश में मतदान प्रतिशत कम होने के बाद अटकलें का बाजार बड़ा कंफ्यूज हो गया है. सही मायने में तमाम राजनीतिक विश्लेषक भी सटीक अनुमान लगाने में कतरा रहे हैं. उसके पीछे की एक बड़ी वजह यह है कि जब-जब तमाम राजनीतिक अनुमान पिछले 10 सालों में लगे तब तक ऐसे उलट फेर हुए कि अब राजनीतिक पंडित भी थोड़ा सा सेफ साइड चलना चाहते हैं.
मप्र में पहले चरण में 19 अप्रैल और दूसरे चरण में 26 अप्रैल को हुए मतदान के बाद सबसे ज्यादा चर्चा रीवा संसदीय सीट की रही. मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र की ये संसदीय सीट चर्चा में इस वजह से आई यहां पर वोटिंग प्रतिशत 50 से नीचे चला गया निर्वाचन आयोग के सारे प्रयास बहुत कमजोर पड़े और कारण दिया गया की शादी बारात और लग्न के सीजन के कारण वोटिंग परसेंटेज डाउन हुआ जबकि इसके ठीक बगल की संसदीय सीट सतना वहां पर वोटिंग परसेंटेज ठीक रहा तो, क्या वहां पर लग्न बारात और शादी का सीजन नहीं था?
विंध्य क्षेत्र के रीवा संभाग में तीन संसदीय सीटों की अगर चर्चा की जाए जिसमे रीवा, सीधी और सतना है, तो रीवा संसदीय सीट में वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा के सामने सेमरिया विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा की पत्नी जो पूर्व में सेमरिया विधानसभा सीट से विधायक रह चुकी हैं, नीलम अभय मिश्रा मैदान में थी. इस क्षेत्र के चुनाव में सबसे खास बात यह थी कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने यहां पर चुनाव को बहुत लोकल बना दिया था. सांसद पर आरोपों की झड़ी लगा दी, 10 साल का हिसाब, संसदीय कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोप इन सब मुद्दों पर इस संसदीय सीट में चुनाव लड़ा गया.
बीजेपी की ओर से एक नरेटीव सेट करने की कोशिश की गई की देश का चुनाव है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनना जरूरी है इसलिए रीवा सीट भी जीतना जरूरी है. इस तरह का नेरेटिव बीजेपी ने सेट करने का प्रयास किया लेकिन विपक्ष में खड़ी कांग्रेस चुनाव को लोकल बनाने में लगी रही, स्थानीय मुद्दों पर ही बात होती रही. 10 सालों के कार्यकाल में बेरोजगारी, भ्रस्ताचार जैसे विषयों पर कांग्रेस ने चुनाव को बांधने की कोशिश की वहीं दूसरी ओर बीजेपी से प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा सीधे तौर पर डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला पर डिपेंड नजर आए, इसका सबसे बड़ा कारण यह था की डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल का गृह जिला है रीवा और यह बात जग जाहिर है कि उनके प्रयासों से ही पहली बार जनार्दन मिश्रा को टिकट मिला था दूसरी बार टिकट मिला था और तीसरी बार भी उन्हीं की सहमति पर यह टिकट मिला, इसलिए पूरा चुनाव संगठन से कहीं ज्यादा राजेंद्र शुक्ला पर केंद्रित हुआ.
देखें वीडियो : जनार्दन मिश्रा या नीलम मिश्रा किसके सर सजेगा लोकसभा का ताज देखिये पूरा विश्लेषण
रीवा लोकसभा चुनाव 2024 : लोकसभा चुनाव में रीवा संसदीय सीट में राष्ट्र से ज्यादा रीवा संसदीय सीट के अंदर के मुद्दे प्रासंगिक रहे हालांकि इसको लेकर चर्चा यह भी रही कि कांग्रेस प्रत्याशी निलम मिश्रा के पति अभय मिश्रा के चुनाव लड़ने का तरीका थोड़ा अलग रहता है. वो अग्ग्रेसिव कैम्पेन करके चुनाव लड़ते हैं. सीधे-सीधे देखा जाए तो 1 महीने का समय कांग्रेस को इस सीट पर मिला था और एक महीने में ना तो उन्होंने किसी राष्ट्रीय नेता की रैली करवाई ना राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव को ले जाने की कोशिश की उनका पूरा फोकस था कि स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव हो शायद उनको अंदेशा था कि अगर चुनाव नरेंद्र मोदी पर केंद्रित किया जाएगा तो नेरेटिव चेंज हो सकता है, इसलिए चुनाव को स्थानीय बनाया गया.
इससे इतर भाजपा के प्रेस थे की राम मंदिर, धारा 370 और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित चुनाव को बनाया जाए इसके लिए कई बड़ी जनसभाएं भाजपा ने आयोजित की जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और प्रदेश के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री की कई सभाएं रीवा में कराई गयीं. लेकिन इस दौरान कई बार ऐसा लगा कि ऐसे तमाम बड़े नेताओं के दौरे के बाद भी चुनाव ग्लोबल नहीं हो पाया बल्कि लोकल ही बना हुआ है. वही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी सहित कुछ बड़े कांग्रेस लीडर यहां आए जो प्रदेश के ही थे और उन्होंने स्थानीय मुद्दे को ही सामने रखा संविधान बचाने का मसला तो उठाया लेकिन सबसे ज्यादा फोकस जनार्दन मिश्रा से सवाल पूछे 10 सालों का हिसाब माँगा.
बीजेपी के नेता इस बात का भी तर्क देते रहे कि देखिए देश का चुनाव है यह कोई सरपंच का चुनाव नहीं है, स्थानीय चुनाव नहीं लेकिन पूरे चुनाव के दौरान ना तो कांग्रेस प्रत्याशी नीलम अभय मिश्रा और ना ही उनके पति अभय मिश्रा कहीं पर भी देश की बात नहीं कर रहे थे यानी देश के बड़े मुद्दे से इतर वह रीवा संसदीय सीट की बात कर रहे थे. संसद पर आक्रामक थे. वोटिंग प्रतिशत गिरने के बाद ना बीजेपी को समझ में आ रहा है, ना कांग्रेस को भाजपा जहां इस सीट पर 3 से 4 लाख वोटो से जीतने का दावा कर रही थी. अब दबी जुबान से भाजपा के नेता खुद कह रहे हैं कि 40 से 50,000 वोटो से हम चुनाव जीत जाएंगे यानी लगभग दो ढाई लाख वोट अब काम बता रहे हैं.
वहीं कांग्रेस का कहना है कि हर क्षेत्र में विधानसभा चुनाव से अच्छे परिणाम मिलेंगे लेकिन आश्वस्त कोई नहीं है. सब की निगाहें इस बात पर टिकी हुई है कि बसपा कैसा परफॉर्म करेंगी. बसपा से इस बार ओबीसी समुदाय से अभिषेक पटेल को टिकट दिया था. अभिषेक पटेल किस-किस क्षेत्र में असर दिखा पाएंगे यह तो परिणाम बताएंगे, इनका इलेक्शन कैंपेन उतना मजबूत समझ नहीं आया और अगर अभिषेक पटेल एक लाख से ऊपर वोट प्राप्त करते हैं तो समीकरण बदलने की उम्मीद कांग्रेसी लगाये बैठे हैं. बीजेपी का दावा है की हमारा तिक्ग्रही वोटर ही वोटिंग करने निकला था वहीं कांग्रेस का कहना है की बीजेपी का वोटर सांसद के प्रति नाराजगी के कारण वोट डालने ही नहीं गया परिवर्तन वाले लोग वोट करने निकले थे.
4 जून को पता चल जाएगा की सीट पर वाकई वोटिंग प्रतिशत किस कारण से कम हुआ? क्या हितग्राही कम वोट डालने पहुंचे या फिर सिर्फ हितग्राही ही वोट डालने पहुंचे या कांग्रेस के पक्ष में माहौल था प्रत्याशी चयन से खफा लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया. एक पक्ष यह भी निकलकर सामने आ रहा है की अंडर करंट नरेंद्र मोदी का था इसलिए भाजपा को वोट पड़े. वहीं कहीं- कहीं यह भी चर्चा थी की जीत बीजेपी की होगी इसलिए बीजेपी वर्कर ने मेहनत नहीं की वही कांग्रेस के कुछ लोग विधानसभा की हार की हताशा से वोट डालने ही नहीं गए. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की रीवा बीजेपी का स्थापित गढ़ बन चुका है. रीवा लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 8 सीटों में सिर्फ एक पर कांग्रेस है इसलिए बीजेपी कॉंफिडेंट लग रही है. इन तमाम पहलुओं पर विराम 4 जून को लग जाएगा जब यह तय होगा कि आखिर रीवा की जनता ने अपना सांसद किसे चुना है?
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Author: Vindhya Times
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