REWA’S YOUTH : रीवा के युवा ही दिखाएंगे संसद का रास्ता
REWA’S YOUTH : रीवा लोकसभा सीट का फैसला इस बार युवा मतदाता तय करेंगे क्यों की पिछले डेढ़ दशक से यदि कोई आहत हुआ है तो वह युवा वर्ग है. सरकारे आई और रोजगार के वादे किए लेकिन अच्छी शिक्षा व रोजगार के सारे वादे दलीले दलदल में दफन हो गयी.
युवा जहां खड़ा था वही आज भी है उसे ना तो रोजगार मिला और ना ही शिक्षा की सही व्यवस्था. लिहाजा समाज का एक बड़ा तबका नाराज है. एक कहावत है जिधर युवा चला उधर जमाना चलता है. लोकसभा चुनाव में इस कहावत के साकार होने की संभावनाएं भी नजर आ रही है जिस दल की ओर युवा झुकेगा रीवा की सियासत भी उसी ओर जाएगी.
यह हम नहीं कह रहे है यह निर्वाचक नामावली में युवा मतदाताओं की भागीदारी बता रही है. निर्वाचक नामावली में दर्ज मतदाताओं की संख्या पर गौर करें तो 55 फ़ीसदी से अधिक युवा मतदाता है इस वर्ग की मतदान में भागीदारी भी अधिक रहती है जिसे युवा चाहेगा 5 साल का राज देगा और जिसे चाहे वनवास…..
ऐसा इसलिए क्योंकि 45% मतदाता चाह कर भी परिणाम को प्रभावित नहीं कर सकता. देखा यह जा रहा है कि हर जाति वर्ग का युवा बेरोजगारी की पीड़ा से आहत है. विंध्य खास कर रीवा में उद्योग धंधे ना होने से यहां का युवा विशेष पीड़ित है. सरकार की योजनाएं केवल कागजों तक ही सीमित है.
REWA’S YOUTH : रोजगार न मिलने से युवा समाज की मुख्य धारा से भटक कर नशे का शिकार होकर अपराधिक गतिविधियों में धस्ता जा रहा है. अभी यह कह पाना कठिन है कि वह किस दिशा में जाएगा दलविशेष के पक्ष में इसलिए भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि किसी भी दल ने युवाओं को रोजगार देने के लिए कोई खास विजन सामने नहीं रखा है.
मतदाता सूची के अनुसार रीवा संसदीय क्षेत्र में लगभग 10 लाख से अधिक युवा मतदाता है. इनकी उम्र 18 से 39 वर्ष है अगर रीवा जिले में युवाओं की मतदाता संख्या पर गौर करें तो जिले की कुल मतदाता 18 लाख 40 हजार हैं जिनमें 10 लाख से अधिक युवा है. इसी प्रकार सतना सीधी व शहडोल के भी हालात है आंकड़ों पर नजर दौड़ आए तो औसत रूप से चारों लोकसभा सीटों में विधानसभा क्षेत्र में युवा मतदाता 55% से अधिक है. किसी भी लोकसभा में कोई भी दल युवाओं को किनारे में रखकर चुनाव नहीं जीत सकता है.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि विंध्य की सियासत युवाओं के कंधे पर है. आपको बता दें कि पिछले ढाई दशक से रोजगार के अवसरों में बेहद कमी आई है. 2000 के दशक के पूर्व कुछ युवाओं को विभिन्न विभागों में कर्मी की नौकरी मिली थी हालांकि अब अधिकांश नियमित हो चुके हैं लेकिन विभाग में पूरी तरह संविलियन नहीं हो पाया है. पिछले डेढ़ दशक में सामान्य शिक्षा के युवाओं को रोजगार की बात दूर तकनीकी योग्यता रखने वाले युवाओं को भी कहीं रोजगार नहीं मिला स्थानीय स्तर पर रोजगार के कोई अवसर मुहैया नहीं कराए गए हैं.
स्वरोजगार योजनाओं का लाभ केवल बड़े लोगों के बच्चों को मिला मध्यम और गरीब घर के युवाओं के पास बैंक गारंटी ना होने से स्वरोजगार स्थापित करने का भी मौका नहीं मिला. ऐसे में युवा पढ़ लिखकर दूसरे राज्यों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर रहे हैं. रोजगार के लिए पलायन युवाओं की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण है अब देखना होगा के युवा मतदाता किसको राज देते है और किसे वनवास….
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Author: Vindhya Times
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